2 जून 1939 को जन्मे श्री कृष्ण कुमार मिश्रा जी, जिन्हें श्रद्धापूर्वक ‘श्याम साधु’ के नाम से जाना जाता है, ने बीते 77 वर्षों से अधिक समय तक अटूट भक्ति और निःस्वार्थ भाव से बंदरों एवं अन्य जीव-जंतुओं की सेवा की है।
उनकी निष्ठा और त्याग की भावना लोगों को प्रेरित करती है कि हम भी अपने आसपास के जीव-जंतुओं की देखभाल करें और उनके प्रति संवेदनशील बनें।
श्री कृष्ण कुमार मिश्रा, जिन्हें श्रद्धापूर्वक ‘श्याम साधु’ के नाम से जाना जाता है, का जन्म 2 जून 1939 को हुआ था। वे पिछले 77 वर्षों से भी अधिक समय से वानरों सहित सभी पशुओं की निःस्वार्थ सेवा कर रहे हैं। उनका उद्देश्य केवल जरूरतमंद पशुओं की सहायता करना ही नहीं, बल्कि समाज में यह जागरूकता फैलाना भी है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने आस-पास के जीव-जंतुओं की सेवा और देखभाल करे।
पशु सेवा का संकल्प:
झारखंड (तत्कालीन बिहार) के हजारीबाग जिले के बेरमो में जन्मे श्याम साधु का पशुओं के प्रति प्रेम बचपन से ही रहा। उनके पिता, श्री बल भद्र शरण मिश्र, हज़ारीबाग़ पुलिस विभाग में निरीक्षक थे।
उनका प्रारंभिक जीवन वाराणसी में अपने मामा के घर रहने के दौरान ही उन्होंने पशु सेवा का संकल्प लिया। बचपन में वे चोरी-छिपे रोटियां लाकर पशुओं को खिलाया करते थे।
वानरभोज के आयोजक:
श्री श्याम साधु जी का कहना है कि वानरों की सेवा करना ही स्वयं श्री हनुमान जी की सच्ची सेवा है। क्योंकि मनुष्यों ने ही श्री हनुमान जी के वानर स्वरूप को देखकर ही उनकी प्रतिमाएँ बनाईं।
विडंबना यह है कि आज हम सभी उन प्रतिमाओं पर श्रद्धापूर्वक भोग अर्पित करते हैं, परंतु उन्हीं के जीवित वानरों की सेवा करने से मुख मोड़ लेते हैं।
इस अज्ञान को दूर करने के लिए श्री श्याम साधु जी ने ‘वानरभोज’ रूपी सेवा-यज्ञ की शुरुआत की। उनके द्वारा स्थापित यह दिव्य परंपरा आज भी उनकी सेवा और निष्ठा के साथ निरंतर जारी है।
जीवों के संरक्षक
उन्हें अनाथ जानवरों के ‘मसीहा’ के रूप में जाना जाता है क्योंकि वे उनके बीच कोई भेदभाव नहीं करते। चाहे सांप हो, गाय हो, गधा हो, पक्षी हो, सूअर हो या कोई अन्य जानवर—जो भी घायल या बेसहारा होता है, वे उसे अपने घर लाकर स्वयं उपचार करते हैं।
उनके घर में पशुओं के लिए विशेष वार्ड बनाया है, जहाँ वे अस्पतालों में जगह न मिलने पर घायल जानवरों को रखते हैं। यदि कोई पशु असमय अपना शरीर त्याग देता है, तो वे उनका अंतिम संस्कार पूरे विधि-विधान से करते हैं। उन्होंने अपने घर के परिसर को ही पशुओं का समाधि स्थल बना दिया है। वे मानते हैं कि हर जीव के जीवन का सम्मान करना ही सच्ची मानवता है।
उनकी निःस्वार्थ सेवा न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में रहने वाले लोग भी सराहते हैं। कई लोग उनकी उदारता और समर्पण को नमन करते हैं।
प्रेम और परिवार का बंधन:
श्याम साधु नियमित रूप से निगोहा के भँवरे सुरान गाँव में जाते हैं, जहाँ वे न केवल बंदरों को भोजन कराते हैं, बल्कि जरूरतमंद बच्चों की सहायता भी करते हैं। मौसम की प्रतिकूलता उन्हें कभी नहीं रोकती—वे प्रतिदिन प्रेमपूर्वक रोटियां, चना और अन्य खाद्य सामग्री एकत्र कर इन प्राणियों की सेवा में समर्पित रहते हैं।
जब उन्होंने पहली बार बंदरों को भोजन कराना शुरू किया, तो मन में स्वाभाविक रूप से यह आशंका थी कि कहीं वे आक्रामक व्यवहार न करें। लेकिन समय के साथ यह डर स्नेह में बदल गया। उनका समर्पण और करुणा इतनी गहरी हो गई कि धीरे-धीरे बंदरों और उनके बीच एक अनोखा रिश्ता बन गया। आज यह संबंध केवल सेवा तक सीमित नहीं है, बल्कि पारिवारिक भावनाओं से ओत-प्रोत हो चुका है—जहाँ निःस्वार्थ प्रेम ही सबसे बड़ा संवाद बन गया है।
पर्यावरण-संरक्षण
श्याम साधु न केवल पशु प्रेमी हैं, बल्कि वे पर्यावरण-संरक्षण के लिए भी कार्यरत हैं।
वे विभिन्न वृक्षारोपण अभियानों में सक्रिय रूप से भाग लेते रहे हैं और लोगों को पौधे लगाने के लिए प्रेरित करते हैं।
उन्होंने ‘गीतांजलि हर्बल गार्डन’ नाम से एक सुंदर बगीचा विकसित किया है, जहाँ विदेशी और भारतीय पौधों का अद्भुत संग्रह मौजूद है।
उनके प्रयासों से उत्तर भारत में नारियल, मिनी लीची, काली अंगूर, सिंगापुर स्टार फ्रूट, अंजीर, लौंग जैसे पौधे पनप सके हैं। उनका सपना है कि हर घर में एक छोटा सा बगीचा हो, जिससे पर्यावरण और जीव-जंतुओं का संरक्षण हो सके।
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